जेल की नींव पर खड़ा है राजकीय महिला कालेज
इतिहास में कई किस्से-कहानियां दफन हैं, आज भी शहर की कितनी ही इमारतें ऐसी हैं जो शहर के समृद्ध इतिहास को बयां करती नजर आती हैं। बस फर्क होता है नजर और नजरिए का। शहर का इकलौता प्रतिष्ठित राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय जेल की नींव पर खड़ा है। सन 1973 में जेल को तोड़कर बनाई नई बिल्डिंग में इंदिरा चक्रवर्ती के नाम पर महाविद्यालय शुरू हुआ। यहां 80 साल पुराना पीपल का पेड़, जेल का पत्थर और नींव आज भी जेल की कहानी बयां कर रहे हैं। रिटायर्ड प्राचार्य डॉ. बलजीत सिंह व 83 साल के रिटायर्ड हिस्ट्री प्रोफेसर समर सिंह सहारण ने जेल से कॉलेज बनने की कहानी को साझा किया। बता दें कि राजकीय महिला कॉलेज की स्थापना सन 1969 में हुडा कांप्लेक्स में हुई थी। इसके बाद 1973 में इसे नए भवन में शिफ्ट किया गया।
70 साल पुराना है जेल का पत्थर
महाविद्यालय में प्रवेश करते ही बाएं तरफ जेल का पुराना पत्थर पड़ा नजर आता है। यह आज के पत्थर और ईंटों जैसा नहीं बल्कि पुराने समय में भट्ठों पर तैयार किया गया पत्थर है। इस 70 साल पुराने पत्थर की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 45 साल पहले कॉलेज की नई इमारत बनने के बाद से यह ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है।
80 साल पुराना पीपल का पेड़
रिटायर्ड प्रोफेसर समर सिंह बताते हैं कि जेल के ठीक बीचों-बीच 80 साल पुराना पीपल का पेड़ है। यह जेल में लगाया गया था, जो जेल से कॉलेज में शिफ्ट होने के बाद भी हरा-भरा लहरा रहा है। जेल के समय का यह पीपल का पेड़ आज भी कॉलेज में मौजूद है। उन्होंने बताया कि कालेज के गेट की जगह की जेल का गेट होता था। जेल में एंट्री करते ही दाई तरफ जेल सुपरिटेंडेंट का कमरा था। इसके बाद शुरू होती थी जेल की बैरक। जेल के ठीक बीच में एक बड़ा हाल था, हाल में कैदियों और मिलने वालों के बीच एक लोहे का जाल होता था। जेल में पेड़-पौधे और खेती होती थी, जहां कैदियों से काम कराया जाता था।
जेल में कैदी थे शहीद श्रीराम शर्मा
रिटायर्ड प्राचार्य डॉ. बलजीत सिंह ने बताया कि स्वतंत्रा सेनानी श्रीराम शर्मा की राजकीय महिला महाविद्यालय के द्वार पर आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है। जबकि वह एक समय पर महाविद्यालय की जगह पर बनी जेल में ही कैदी की जिंदगी गुजार रहे थे।
मिनी ग्राउंड में आज भी है दीवार की नींव
महाविद्यालय के ठीक बीचों-बीच मौजूद मिनी ग्राउंड में आज भी जेल के बैरक की दीवार की नींव दिखाई देती है। हालांकि मजबूत पत्थरों से बनी इस पक्की नींव को अब बड़ी-बड़ी घास ने छुपा लिया है, लेकिन फिर भी इसे देखा जा सकता है।
शुरुआती बैच की छात्राएं दहशत में रहीं
रिटायर्ड प्राचार्य डॉ. बलजीत सिंह ने बताया कि सन 1973 में जब जेल की जगह कॉलेज शुरू हुआ तो शुरुआती बैच में पढ़ने वाली छात्राओं में दहशत का माहौल रहता था। अफवाहें थी कि हॉस्टल में जेल में फांसी तोड़े जाने वाले कैदियों की आत्माएं भटकती हैं।